तुम्हारी याद - 2 / अनीता कपूर
किसी छाया की भाँति है
तुम्हारी याद
और लोग
पहचान लेते हैं तुम्हें
मेरे हर छिपे-खुले
छोटे-बड़े प्रसंगों में
हाँ,
मेरे हर छिपे-खुले
छोटे-बड़े प्रसंगों में
भोजन के स्वादों में
चाय की चीनी में
गुलदस्ते के फूलों में
कपड़े के रंगों में
दफ्तर के झगड़ों में
महफ़िली बातों में
सब कुछ में, सब कुछ में
सच, आस-पास के लोग मेरे
सहज ही पहचान लेते हैं तुम्हें
मेरे हर छिपे-खुले
छोटे-बड़े प्रसंगों में
पैरों के नीचे रोज़ फैलती राहों में
मेरी आँखों में, मेरी आहों में
मेरे आसमान में
नदी नालों में और यहाँ तक की
मेरे बाग के पेड़ पौधों-झड़ियों में भी
शायद मेरी साँसों में भी
हाँ
कहाँ तक छुपाऊँ तुम्हें?
रोम-रोम से अभिव्यक्त होते हो तुम
तुम तो आविष्टन हो
कथा सी मेरी जिंदगी में
याद तुम्हारी
नहीं
स्वंय तुम ही एक मिथक हो
समय से अनायास
फिर तुम्हारी याद