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तुम्हारे बिन / कृष्णा वर्मा
Kavita Kosh से
किए जतन मन बहलाने को
मिले ना कोई बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुस्कानें।
मन का शहर रहा करता था
जगमग प्रीतम तुमसे
बिखरा गया सब टूट-टूटकर
चले गए तुम जब से।
चुहल मरा भटकी अठखेली
गुमसुम हुई अकेली
हंसता खिलता जीवन पल में
बन गया एक पहेली।
सिमट गया मन तुझ यादों संग
हृदय कहाँ फैलाऊँ
कहो तुम्हारे बिन कैसे
विस्तार नया मैं पाऊँ।