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तुम्हारे लिए / ख़ुर्शीद अकरम
Kavita Kosh से
ज़मीन की कशिश से बाहर एक आसमान
एक घोड़े की पीठ
और एक सड़क जिस पर
धूप चमकीली
बारिश अलबेली होती है
एक मिसरा लिखा था तुम्हारे लिए
मन की मिट्टी में दबा कर रखी थी
तुम्हारे नाम की कोंपल
तुम्हारे लिए बचाई थी
लहू की लाली
रतजगे
अक़ीदों की शिकस्तगी
आग की लपटें एक हाथ में
एक में आब-ए-पाक
एक आँख शर्मीली
एक आँख बेबाक
कश्ती के तख़्ते
और शौक़ का मव्वाज दरिया
शहद दुनिया को बाँट दिया
बचा कर रखा अपना मोम
तुम उस की बाती होतीं
हम जलते सारी रात
तुम ने चुना
सोने का सिंदूर
चाँदी की चँगीरी
पलंग नक़्शीन
पुख़्ता छत
पक्का घड़ा
उथला कुवाँ
पानी जैसा ठहर गईं तुम
हवा के जैसा बिखर गया मैं