वंदन तुम्हारा, धनुर्धारि सृष्टि के दिक्पाल तुम,
हे सिया पति धर्म तुम हो, हे प्रभु नतभाल तुम।
छू अहल्या को किए पाषाण से मानव तुम्हीं
चीरते तम को रघुपति, ज्ञान अग्नि बाण तुम।
कौन ऐसा जगत में यश से है अपरिचित प्रभु,
अनवरत द्रुतगामिनी इस मेदिनी के प्राण तुम।
अवतरित इस भू पर स्वामी, किये कौन से कौतुक नहीं,
जाती हर इक स्वास से मंत्रोंक्त मेरे राम तुम।
नयन पंकज मेघ सम, भुज कोदण्ड को धारण किए,
वेद उपनिषद पुराणों का हो प्रभ हो प्रभु विश्राम तुम।
राम होकर हैं किए मुक्त ताड़का रावण प्रभु,
तर्जनी में हो सुदर्शन होहो मेरे घनश्याम तुम।
नेति नेति कहते जिसको हैं बखानते शास्त्र सब,
बीज हो सबका तुम्हीं प्रभु, हो सभो सभी का मान तुम।
भंग करके शिव धनुष धारण जो जानकी को किया,
कह रहा हर एक मुख होहो सियापति राम तुम।
छानते वन अश्रुपूरित नयनों से जो तुम प्रभु,
किञ्चित अतिशयोक्ति नहीं कह प्रेम के हो गान तुम।
वर्षों से होती सुवासित पद्धति के धारक तुम्हीं,
सनातन मर्यादा के पुरुषोत्तम श्रीराम तुम।