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तुम ! मेरे श्रृंगार नही थे / अनीता सिंह
Kavita Kosh से
तुम! मेरे शृंगार नहीं थे
लेकिन, दिल पर भार नहीं थे।
जिससे रूप डाल का निखरा
टूट गया फिर नीचे बिखरा
फूल धरा पर जो थे बिखरे
वो डाली पर भार नहीं थे।
कुछ पीड़ा जब जम जाती है
अन्तर्मन को पिघलाती है
बन कर जो आँसू बह निकले
वो नयनों के भार नहीं थे।
सागर का संदेशा लेकर
फिरता इधर-उधर था जलधर
विलग हुये जो नीर गगन से
वो बादल पर भार नहीं थे।
भूखा बच्चा जब रोता है
ममता का फूटा सोता है
क्षीर रुधिर से अलग हुये जो-
वो आँचल पर भार नहीं थे।
माना तुम शृंगार नहीं थे
लेकिन, दिल पर भार नहीं थे।