भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
तुम हो
-दिन में-
सूर्यमुखी नदी की
नटखट देह,
खुशमिज़ाज धूप ।
तुम हो
-रात में-
गुलाब-फूलों की नाव,
चांदनी के चुंबनों की
कलहंसी देह,
बाहों में बिछलती--
नाचती,
स्वप्न-मयूरी तरंग ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से)