भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम / देवयानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक तुम वह हो
जो तुम हो
बतियाते हो मुझसे
मुझे सुनते हो
जाने क्या सोचते हो
जाने कैसे रहते हो
क्या चाहते हो
क्यों चाहते हो
चाहते भी हो या नहीं चाहते हो

एक तुम है
जो मुझमें है
शायद तुमसे मिलता-सा
शायद न मिलता हो तुमसे इस तरह
मैं अपने भीतर के इस तुम से बतियाती हूँ
उसकी आवाज़ें तुम तक जाती हैं

जब तुम कहते हो
मैं मुझमें बैठे तुम को सुनती हूँ
यह जो तुम बाहर हो मेरे सामने
यह जो मुझमें है
क्या यह भी बतियाते हैं दोनों