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तुम कहो मन क्या करूं मैं / पूनम गुजरानी
Kavita Kosh से
इस पार है बाबुल का घर
उस पार साथी है विकल
तुम कहो मन करता करूं मैं
खोलते भुजपाश मन के
स्वप्न व्याकुल हो चले
बन रही है एक कविता
मधुमास के अम्बर तले
मां का है इस पार आंचल
प्रीत का उस पार काजल
तुम कहो मन क्या करूं मैं
उसने रखी है शीष पर
आशीष की गठरी अटल
आंसू छुपाती आँख के
उपदेश देती है विमल
इस पार है भाई बहन
उस पार है आतुर सजन
तुम कहो मन क्या करूं मैं
देहरी को देकर दुआ
किस ओर अपने डग भरूं
चारों तरफ तिलिस्मी जाल
ह्रदय बता किस नाम करूं
इस पार पहचाने सभी
उस पार अनजाने सभी
तुम कहो मन क्या करूं मैं