भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम गंगाजल हो गयी / सुरेश चंद्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने लिखी क्लिष्ठ हिंदी में
कठिन प्रेम कविताएँ,
मेरी जानिब ख़ालिस उर्दू की,
तुम नफ़ासत भरी ग़ज़ल हो गयी

थक कर सिमट गया मुझमें
पोर-पोर दुखता मटमैला दिन,
सुख सा निखरी-बिखरी मुझमें
तुम गमकती संदल हो गयी

साँझ ढल कर कँटीली हुई
मैं खुरदुरा घवाहिल ढहा
फाहा-फाहा, रोआं-रोआं
तुम मेरा मलमल हो गयी

मैं उभरा जब भी, पश्ताचाप संताप भाप सा
तुम उतरी मेरी आँखों में, गंगाजल हो गयी