भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम नहाकर आ गए / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
दर्द की काली बदरिया पर उजाले छा गए।
लग रहा है चाँदनी में तुम नहाकर आ गए।
आँख में शाकुंतलम है,
होंठ पर है माधुरी।
रंग तुम से ले रही है,
फूल की हर पाँखुरी।
देखकर तुमको प्रणय के, गीत भँवरे गा गए।
चूमती है पाँव माहुर,
गेसुओं में बदलियाँ।
जब हंसी हो तुम अदा से,
चमचमाईं बिजलियाँ।
देवता भी देख तुमको, रास्ता भरमा गए।
हो तुम्हीं मेरी तपस्या,
और तुम ही वंदना।
हो तुम्हीं वैराग मेरा,
और तुम ही साधना।
तुम हृदय की वाटिका में रोशनी बिखरा गए।