भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूत के अंगार / अग्निशेखर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब कविताएँ वजह बनीं
मेरे निष्कासन की
मैंने और ज़्यादा प्यार किया
                   जोख़िम से
अवसाद और विद्रोह के लम्हों में
मैंने मारी आग में छलांग
और जिया
शायर होने की क़ीमत अदा करते हुए

मुझ तक आने के रास्ते में बिछे हैं
तूत के दहकते अंगार
कौन आता नंगे पाँव
मेरी वेदना के पास