भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तूफ़ान की बात मत कीजिए / प्रताप सहगल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आइए
तशरीफ लाइए
मेहमान हैं आप/दोस्त भी
चाय लेंगे या कॉफी
बेशक मैं आपको मूंगफली भी खिला सकता हूं
जी नहीं
शराब नहीं पिलाऊंगा।

मैं जानता हूं
एक-दो पैग पी लेने के बाद
आप तूफान का सूरज
हथेली पर उगा लेंगे
और मज़बूर करेंगे
मुझे कि मैं भी घुप्प अंधेरे के बावजूद
उसे सूरज कहूं!

आप बार-बार उस सूरज को
चमकाएंगे मेरे सामने नेताजी!
इस कोण से/उस कोण से
पर मुझे कहीं भी
किरण दिखे तो कहूं
हां, सूरज है
तब उठा लेंगे आप तूफान
आप कहेंगे सूरज
मैं कहूंगा सूअर
सूरज और सूअर का फर्क
समझते हैं आप?
नहीं समझते
वैसे ही
जैसे आप नहीं समझते
अपने स्वर्ग और
खदान के नरक का फर्क।

यह लीजिए
न सही शराब
चाय तो है
आप यो त्योरियां मत चढ़ाइए
दार्जिलिंग की असली चाय है
पी जाइए।

यह क्या
आप तो बिना तर्क के बोलने लगे
चाय पीते ही
व्यवस्था के पैबन्द खोलने लगे
करने लगे ईमान की बात
टूटते मूल्य और
आम आदमी का त्रास
बात की रेंज लम्बी है
लम्बे हैं आप के हाथ
पर कमज़ोर हैं कान
नहीं सुनते लंगड़ाते देश का दर्द।

काबिल हैं आप
उठा सकते हैं चाय की प्याली में
बदलाव का तूफान
आप इस तूफान को समेटिए
ले जाइए इसे प्रधानमंत्री के पास
मत कीजिए
मत कीजिए हमारे साथ
हमारे साथ
तूफान की बात मत कीजिए।

1984