भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू कुछ ना सुनले / चित्रा गयादीन
Kavita Kosh से
चूल्हा के आँच तोर चेहरा झुराई
तोर जिन्दगी राखी में लपेटी
कितना आसा बटोर के खड़ा बाटे
दूध उफला है, दाल खौली
भात सींझे
एक दिन
पिसान के सपना
मन के बातचीत
खचियाइस रहा तोर अँगना में
चार दीवार पर नौता के हाथ
मुस्कियाइस रहा
ओढ़नी ओढ़ के आल तोर द्वार
ए भौजी, ए दुल्हिनिया
ए लीसवा के माई
गोहराइके कहाँ तोके लेके चलगे।