भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू कैसे क्यों हारा सोच / कुमार नयन
Kavita Kosh से
तू कैसे क्यों हारा सोच
तब फिर जीत का नारा सोच।
मत दे औरों पर इल्ज़ाम।
तू कितना नाकारा सोच।
ग़फ़लत करने वाला कौन
सोच ज़रा दोबारा सोच।
कुछ भी करने से पहले
क्या था सोच हमारा सोच।
बस इतना है मेरे पास
मीठी बोली खारा सोच।
सौ खुशियां दे देता है
इक पागल आवारा सोच।
काश कि दोनों मिल जाते
मेर्क सोच तुम्हारा सोच।