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तेरी जरूरत हर किस्से में है / सरोज कुमार

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कितने सारे बहाने हैं मरने को,
कितने सारे काम हैं करने को,
सौ-सौ पहेलियाँ हैं बुझने को,
सच्ची-झूठी बातें हैं सूझने को!

कितने रहस्य हैं जानने के लिए
पचीसों धर्म हैं मानने के लिए,
रिश्ते हजारों हैं अगर तू निभाए
गीत है सुरीले, अगर तू गाए!

जो भी है, ढेर-ढेर में है
तू ही न जाने किस फेरे में है
सारा संसार तेरे हिस्से में है,
तेरी जरूरत हर किस्से में है!

तुझको तो सबका सब
बेमानी लगता है,
खून हो, पसीना हो,
बस पानी सा लगता है,
पैदा हुआ है तो
उम्र भर जिएगा भी,
तार-तार सपनों को
जाग कर सिएगा को
जाग कर सिएगा भी?