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तेरे उस हर कण से नफ़रत / जयप्रकाश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
तुम जन-गण को छलो, लहू लीपो-पोतो,
मैं तेरे क्षण-क्षण से नफ़रत करता हूँ।
तुम अपनी मिट्टी में मुझको मत सानो,
तेरे उस हर कण से नफ़रत करता हूँ।
मैं कायर उद्घोषों का लय-ताल नहीं,
कलमकार हूँ, सत्ता का बैताल नहीं,
तुम जी-भर कर करो तिजारत शब्दों की,
मैं चारो चारण से नफ़रत करता हूँ।
तुम ने जो भी कहा, किया उसका उल्टा,
तेरी साथी-सँघाती कुर्सी कुल्टा,
लोकतन्त्र की चादर तुम नोचो-फाड़ो,
तेरे झूठे प्रण से नफ़रत करता हूँ।
चोर-चोर तुम सब मौसेरे भाई हो,
हद से ज़्यादा गिरे हुए हरजाई हो,
जो कुर्सी के लिए लड़े, लूटे-मारे,
मैं तेरे उस रण से नफरत करता हूँ।