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तेरे नाम लिखूँ / राकेश खंडेलवाल

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आज मुझे आदेश हुआ ओ देश! तेरे कुछ नाम लिखूँ
तू ही बतला मुझको आखिर क्या कुछ तेरे नाम लिखूँ

सतयुग से कलियुग तक इतिहासों की बहुत कहानी
बचपन का हर दिन जिनसे रंगती थीं दादी नानी
परियों वाली नगरी में इक सोने वाली चिड़िया
अभिशापों से ग्रस्त किसी राजा की तीनों रानी

तुलसी के मानस में रंग कर खुसरो का दीवान लिखूँ
तू ही बतला ओ दीवाने क्या मैं तेरे नाम लिखूँ

हल्दी घाटी की माटी का माथे पर अभिषेक करूँ
जलियाँ वाला बाग आज फिर यादों में जीवन्त करूँ
मैं कलिंग से बोधि-सत्व के पद-चिन्हों की ओर चलूँ
अलक्षेन्द्र के सन्मुख बन कर पोरस या कौटिल्य बढूँ

सुबह लिखूँ मैं गंगा-तट की या कि अवध की शाम लिखूँ
तू ही बतला ओ दीवाने क्या मैं तेरे नाम लिखूँ

हरिद्वार का कुम्भ और गोकुल नगरी की ग्वालन
नंद गाँव के गोप कई औ’ रास मगन वृन्दावन
मीनाक्षी कोणार्क एलोरा खजुराहो की रचना
रंग भरी मस्ती में गाता अलसाता सा फागुन

सागर जिन्हें पखारे पल पल तेरे पावन पाँव लिखूँ
तू बतला जाने पहचाने क्या मैं तेरे नाम लिखूँ

बाजीराव लिखूँ मस्तानी के संग या रांझे हीरें
नल दमयंती की बातें या शाकुन्तल कुछ तकदीरें
श्रद्धा लिखूँ मनु के संग या लिखूँ नये युग का गाँधी
रंग बहुत है, विषय बहुत हैं, खींचू कब तक तस्वीरें

रजवाड़ों की बात करूँ या स्वतंत्रता संग्राम लिखूँ
तुझसे दूर यहाँ वीराने! अब क्या तेरे नाम लिखूँ