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तेरे रंग मेरे रंग / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
उसका जब भी दिल करता
मेरे मन के खाली कैनवास पर
अपनी अनलिखी कविता
अक्षर - अक्षर करती
मैं उसे भी देख - देख पढ़ता
और अपने आपको भी पढ़ता
जब कभी मैं भी अपनी रौ में होता
उसके मन के खाली कागजों पर
फूलों के खाके बनाकर
उनमें मनचाहे रंग भरता
वह मेरे रंग भी देखती
और रंग भरने वाले को भी देख -देख
चहकती रहती
और कहती तेरे हाथों में रंग आकर
और भी खूबसूरत हो जाते हैं
तुम इतना खूबसूरत पेंट कर लेते हो
कभी खूबसूरत सोच भी पेंट की
सोच पेंट नहीं होती
खूबसूरत से खूबसूरत सोच जी जा सकती है
यह सुनकर वह और खूबसूरत हो गई
मेरे और पास आकर बोली
चल आ
अपनी -अपनी सोचें जी कर
पेंट करते हैं
तुम मेरे रंग बन जाओ
और मैं तेरे रंग बन जाऊं...