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तोड़ना चाहते हैं मौन / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
न यह आंधी
न ही भंबूला;
यह प्रयास है
धरा के सपूत
रक्तकणों का
जो
पहुंच कर आकाश में
तौड़ना चाहते है मौन
सदियों से जिसे धारे है
ये बादल।
चाहे असफल है अब तक
मगर ध्यान रहे
लगातार हरने वाले ही
जीता करते हैं मुकम्मल जंग।
आएगा एक दिन
जब
यही भंबूले लाएंगे बादल
पकड़ कर झींटे
डाल देंगे
वियोगिनी मरुधरा के कदमों में।