भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तो फिर / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सोचा था तो फिर के बारे में कहानी लिखूँगा
तो फिर कोई इन्सान
फ़ार्मूला जिसके पास तैयार हर वक़्त
किसी नई राह का
चलना जिस पर लगे 30 मई को
शहर का न्यूनतम तापमान 10 डिग्री होने जैसा
या कोई जानवर
जिसका शौक़ से किसी अंग्रेज़ीदाँ ने
टामी या पुसी के बदले
हिन्दुस्तानी बोलने वाले सनकी दोस्त का दिया रखा हो नाम

अलग अलग विकल्पों में सबसे प्रिय था
उस लड़की के इर्द-गिर्द ख़याल बुनना
था तो फिर तकियाकलाम जिसका
बहुत रूपसी नहीं पर दोस्त बढ़िया थी
कहानी तो फिर बढ़ती चली थी
अचानक एक दिन सुना जब उसे भी उठा ले गए
तो फिर लिखने लगा हर रात कविता याद कर
सदियों पुरानी वह बात कि
जब-जब हो अधर्म छूता आसमान
जागता हूँ उसके विनाश के लिए तो फिर।