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त्रेता काव्य निबन्ध करी सत कोटि रमायन / नाभादास
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त्रेता काव्य निबंध करी सत कोटि रमायन।
इक अच्छर उच्चरे ब्रह्महत्यादि परायन॥
अब भक्तन सुख दैन बहुरि लीला बिस्तारी।
रामचरनरसमत्ता रहत अहनिसि व्रतधारी॥
संसार अपार के पार को सुगम रूप नौका लियो।
कलि कुटिल जीव निस्तारहित वाल्मीकि तुलसी भयो॥
नाभा जी का यह प्रसिद्ध छप्पय तुलसीदास जी के संबंध में है.