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थपेड़े / हरिऔध

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पेटुओं को कभी टटोलो मत।
कब गई बाँझ गाय दुह देखी।
जो कि मुँह देख जी रहे हैं, वे।
बात कैसे कहें न मुँह देखी।

आज सीटी पटाक बन्द हुई।
वे सटकते रहे बहुत वैसे।
बात ही जब कि रह नहीं पाई।
बात मुँह से निकल सके कैसे।

कब भला लोहा उन्होंने है लिया।
मारतों के सामने वे अड़ चुके।
दाब लेंगे दूब दाँतों के तले।
काम हैं मुँहदूबरों से पड़ चुके।

किस तरह छूटते न तब छक्के।
जब कि तू छूट में रहा माता।
जब कि मुँहतोड़ पा जवाब गये।
तब भला क्यों न टूट मुँह जाता।

दूसरों से बैठती जिस की नहीं।
किस लिए वह प्यार जतलाता नहीं।
मुँह खुला जिसका न औरों के लिए।
दाँत उस का बैठ क्यों जाता नहीं।

हम समझते थे कि हैं कुछ आप भी।
किस लिए बेकार गट्टे हो गये।
देख कर मुझ को खटाई में पड़ा।
आप के क्यों दाँत खट्टे हो गये।

कौड़ियों को हो पकड़ते दाँत से।
चाहिए ऐसा न जाना बन तुम्हें।
छोड़ देगा कौड़ियों का ही बना।
यह तुम्हारा कौड़ियालापन तुम्हें।

दैव का दान जो न देख सके।
आँख तो क्यों न मूँद लेते हो।
और के दूध पूत दौलत पर।
दाँत क्यों बार बार देते हो।

हैं किसे चार हाथ पाँव यहाँ।
क्यों कमाई न कर दिखाते हो।
दूसरों की अटूट संपत पर।
दाँत क्यों बेतरह लगाते हो।

रोटियों के अगर पड़े लाले।
हैं अगर आस पास दुख घिरते।
क्यों नहीं तो निकाल जी देते।
दाँत क्या हो निकालते फिरते।

छीन धन मान मूस कर जिस ने।
देह का माँस नोच कर खाया।
चूस लो उस चुड़ैल का लोहू।
होठ को चूस चूस क्या पाया।

सुधा भला किस तरह हमें होवे।
है लड़कपन अभी नहीं छूटा।
कुछ कहें तो भला कहें कैसे।
कंठ भी आज तक नहीं फूटा।

पोंछने के लिए बहे आँसू।
जो बहुत दुख भरे गये पाये।
पूँछ हैं तो उठी उठी मूँछें।
जो उठाये न हाथ उठ पाये।

जो कभी मुँह मोड़ पाता ही नहीं।
क्यों उसी से आप हैं मुँह मोड़ते।
सब दिनों जो जोड़ता है हाथ ही।
आप उस का हाथ क्यों हैं तोड़ते।

बेकलेजे के बने तब क्यों न हम।
बाल बिखरे देख कर जो जी टँगे।
या किसी की लट लटकती देख कर।
लोटने जो साँप छाती पर लगे।

बाँह बल ही व बाल है जिन को।
जो भले ढंग में नहीं ढलते।
जो बने काल काल के भी हैं।
क्यों न छाती निकाल वे चलते।

जो रही पूत-प्रेम में माती।
क्यों वही काम की बने थाती।
क्या खुलीं जो रहीं खुली आँखें।
देख कर अधखुली खुली छाती।

जाति का दिल ही अगर काला हुआ।
रंग काला किस तरह तो छूटता।
फूट जाये आँख जो है फूटती।
टूट जाये दिल अगर है टूटता।

रोटियाँ छीन छीन औरों की।
क्यों बड़े चाव है चखता।
मिल सका पेट क्या तुझी को है।
दूसरा पेट क्या नहीं रखता।