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थिएटर हम हैं / विष्णुचन्द्र शर्मा

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यात्रा एक थिएटर है
मास्को कब छोड़ा था अलाक्सांदर ने!
कब मुझसे पारी के बगीचे में
अपनी मस्ती का राज खोला था उसने
बगीचे के फूल हमें देख रहे थे और यात्रा के
अनुभव पर हुँकारी भर रहे थे पेड़
वह हांगकांग में
इतना अकेला नहीं था।
फिर उसकी पारी तक की यात्रा एक थिएटर है!
मैं विदा होने तक उसी थिएटर का
एक उदास पात्र रहा।