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दम का तमाशा / नज़ीर अकबराबादी

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जहां में जब तलक यारो! हमारे जिस्म में दम है।
कभी हंसना, कभी रोना, कभी शादी, कभी ग़म है॥
कहें किस किस से क्या-क्या एक दम के साथ आलम है।
मगर जो साहिबे दम है वह इस नुक्ते से महरम है॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥1॥

मशक़्क़त, महनतों से जमा करना दाम दरहम का।
तअल्लुक रंज राहत का तफ़क्कुर बेश और कम का॥
कभी सामान इश्रत का, कभी असबाब मातम का।
कहूं क्या क्या? गरज, यारो! यह झगड़ा है सब इस दम का॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥2॥

इसी दम के, कहूं मैं सीम और ज़र में थपेड़े हैं।
इसी के वास्ते इत्र और गुलाबों के तडे़डे़ हैं॥
जलेबी, इमरती, बर्फी, गुलाबी, लड्डू, पेड़े हैं।
ग़रज मैं क्या कहूं? यारो, यह सब दम के बखेड़े हैं॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥3॥

इसी दम के लिए क्या महल यह संगीं तराशे हैं।
इसी के वास्ते ज़र सीम के तोले व माशे हैं॥
बहारों बाग़ो सहरा सैद<ref>शिकार, शिकार का जानवर</ref> और शिकरे व बाशे हैं।
फ़क़त दम के ही आने के यह सब यारो तमाशे हैं॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥4॥

इसी दम की हैं पोशाकें यह रंगी इत्र में डुबी।
इसी के वास्ते हैं सब तरहदारी व मरगू़बीं॥
गदाई, बादशाही, आशिक़ी, रिंदी व महबूबी।
इसी दम के ही आने की है,-ऐ यारो, यह सब खूबी॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥5॥

इसी दम के लिए अफ़यूं, शराबो, पोस्त बंगें हैं।
नशे, मस्ती, तराने, ऐशो इश्रत की तरगें हैं॥
मुहब्बत, दोस्ती, इख़लास, उल्फत, सुलह, जंगें हैं।
इसी दम के ही आने की यह सब यारो उमंगें हैं॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥6॥

यही दम हाथी, घोड़े, पालकी, हौदज पे चढ़ता है।
यही दम बेकसी में नंगे पांवों में खदड़ता है॥
कोई मुफ़्लिस हो घटता है, कोई उम्दा हो बढ़ता है।
जो कुछ है ऊंचा नीचा यारो सब यह दम ही गढ़ता है॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥7॥

इसी दम के लिए यह सब बने हैं सुख ज़माने के।
मजे़ ऐशो तरब के, और तहम्मुल दुख उठाने के॥
जहां तक शादियो ग़म हैं जहां के कारखाने के।
यह सब दुख सुख हैं ऐ यारो, इसी इक दम के आने के॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥8॥

इसी दम के लिए बदली में बगुलों की क़तारें हैं।
इसी के वास्ते अब्रो हवाओ मेंह की धारें हैं॥
चमन, गुलज़ार बूटा, फूल, फल और आबशारे हैं।
”नज़ीर“ अब क्या कहें? यारो, यह सब दम की बहारें हैं॥
जो आया दम तो आदम है, इसी आदम का आदम है।
न आया दम तो फिर दम में न आदम है, न जादम है॥9॥

शब्दार्थ
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