भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दरख्तों पर पतझर / नचिकेता
Kavita Kosh से
घुला हवा में कितना तेज ज़हर
यह पहचानो
किसने खिले गुलाबों से
उनकी निकहत छीनी
सपनीली आँखों से सपनों की दौलत छीनी
किसने लिखा दरख्तों पर पतझर
यह पहचानो
कौन हमारे अहसासों को
कुन्द बनाता है
खौल रहे जल से घावों की जलन मिटाता है
नोच रहा है कौन बया के पर
यह पहचानो
खेतों के दृग में कितना
आतंक समाया है
आनेवाले कल का चेहरा क्यों ठिसुआया है
किसकी नजर चढ़े गीतों के स्वर
यह पहचानो।