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दस्तानों का जोड़ा / शशिप्रकाश

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प्रिय !
तुम्हारा दिया हुआ दस्तानों का जोड़ा
जो खो गया, खोकर
अधिक दिलाता है तुम्हारी याद !

खो गया कहीं वह
किसी वीरान-सुनसान बस-अड्डे पर
जाड़े की रात काटते हुए,
किसी स्वप्न-विहीन नींद में,
या शायद बेहाली में कुछ सोचते,
उदास होते किसी समय में I

कैसे कहूँ कि अफ़सोस नहीं है,
लेकिन एक बात तुम्हें बतानी है कि
तुम्हारा मेरे लिए बुना हुआ
ऊनी दस्तानों का जोड़ा
खो गया कहीं
और यह कि अब भी मैं तुम्हें
बहुत याद करता हूँ
और बहुत प्यार करता हूँ I

याद हैं वे सभी अन्तरंग क्षण,
भूल गए हैं तो सिर्फ़ वे सपने
जिनमें यह दुनिया
उपस्थित नहीं होती थी
और खो गए हैं
तुम्हारे दिए हुए दस्ताने !

प्रिय !
यहाँ तो बहुत सारी निजी चीज़ें भी
साझी हैं हम सभी साथियों के बीच
अभाव की मजबूरी में’
जैसेकि साबुन की घिसी हुई बट्टी,
तेल की शीशी
और कुरते-पजामे भी कभी-कभी I

साथियों में से कइयों ने तो
दस्ताने ही नहीं, बहुत कुछ खोया है
अबतक की छोटी सी,
एकसाथ तुच्छ और क़ीमती ज़िन्दगी में I
कुछ ने तो कभी देखा ही नहीं है
प्यार से बुना दस्तानों का जोड़ा.
देखा ही नहीं है ज़िन्दगी का बहुत-कुछ I

उन्हें मैं तुम्हारे बारे में बताता हूँ
तुम्हारी दी हुई चीज़ों को और फूलों को
अब भी याद रखता हूँ I
भूल गया हूँ तो, बस, उन्हें
किताबों में दबाकर रखना
और खो दिए हैं
तुम्हारे दिए हुए दस्ताने I

प्रिय !
यहाँ यादें हम सबकी धरोहर हैं
माँ से, पिताजी से,
छुन्नी-मुन्नी सी बहनों से जुड़ी हुई
और हम सब साथियों की
एक ही धरोहर है,
अलग नहीं हैं यादें,

मिल गए हैं सब रंग,
सभी ध्वनियाँ और आकृतियाँ,
मिल गई हैं सब लोरियाँ,
सभी मचलती-तुतलाती बोलियाँ I

नहीं है कोई अलबम हमारे पास
पर याद है
तुम्हारे प्यार करने का एक-एक ढंग,
तुमसे हुई एक-एक तकरार I
खो गया है सिर्फ़
हमारी-तुम्हारी तस्वीरों का अलबम
और खो गए हैं
तुम्हारे दिए हुए दस्ताने I

प्रिय !
इस अभागे देश और अपने लोगों के बारे में
अपने स्फुट विचारों के बारे में
सोचते हुए
नहीं होता हूँ तुमसे
एक क्षण को भी अलग I

पर नहीं हो पाता हूँ
कलात्मक नक़्क़ाशीदार ग़मले में क़ैद
तुम्हारा सबसे पसन्दीदा फूल
(शायद तुम भी अब ऐसा नहीं चाहोगी)
और मुझे अब कोई भी शर्म नहीं है
कि देश और अपने लोगों के बारे में
अपनी भावनाओं को
बड़ी से बड़ी भीड़ में बयान कर दूँ
और इस दौरान अगर गला भी रुंध जाए
और आँसू भी छलक पड़ें
तो भी कोई शर्म नहीं I

और जीना चाहता हूँ इसी तरह,
कठिनतम चुनौतियों भरा जीवन
विपदाग्रस्त अपने लोगों के बीच,
तुम्हारी छाती पर कभी-कभार सिर टिकाने के
विरल क्षणों की
सुखद अनुभूतियों के साथ I

भूल गया हूँ तो, बस,
मादकतम प्यार की घड़ियों में भी
यह कहना कि
तुम्हारे साथ मरने को जी चाहता है
और खो गए हैं
तुम्हारे दिए हुए दस्ताने I

प्रिय !
खड़े होकर दुनिया भर के
बीहड़ में खिले फूलों जैसे बच्चों के साथ
तुम्हें देखता हूँ कल्पना में I
इन्हीं बच्चों में होगा
मेरी-तुम्हारी कल्पना का वह बच्चा
जिसके बारे में हमलोगों ने इतनी बातें की थीं कि
वह मूर्त हो चुका था
हमारी आँखों के सामने I

अब भी बेइन्तहा चाहता हूँ
उस बच्चे को, तुम्हारी ही तरह,
अपनी जान से बढ़कर I
पृथ्वी के सारे बच्चों के साथ
घुल-मिल गया है उसका चेहरा
और खो गए हैं
तुम्हारे दिए हुए दस्ताने I