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दादीजी के बोल / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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मिश्री जैसे मीठे मीठे,
दादीजी के बोल पिताजी।

परियों वाली कथा सुनाती,
किस्से बड़े पुराने।
रहें सुरक्षा वाली छतरी,
हम बच्चों पर ताने।
बच्चे लड़ते आपस में तो,
न्यायधीश बन जातीं।
अपराधी को वहीं फटाफट,
कन्बुच्ची लगवातीं।

कितनी प्यारी-प्यारी बातें,
बातें हैं अनमोल पिताजी।
यह कमरा है परदादा का,
उसमें थीं परदादी।
इस आंगन में रची गई थी,
बड़ी बुआ की शादी।
अब तक बैठीं रखे सहेजे,
पाई धेला आना।

पीतल का हंडा बतलातीं,
दो सौ साल पुराना।
दादी हैं इतिहास हमारा,
दादी हैं भूगोल पिताजी।
रोज शाम को दादाजी से,
चिल्लर लेकर जातीं।
दिखे जहाँ कमजोर भिखारी,
उन्हें बांटकर आतीं।

चिड़ियों को दाना चुगवातीं,
पिलवातीं हैं पानी।
पर सेवा में दया धर्म में,
बनी अहल्या रानी।
चुपके-चुपके मदद सभी की,
नहीं पीटतीं ढोल पिताजी।
अब भी काम वालियाँ हर दिन,
सांझ ढले आ जातीं।

चार चार रोटी सब्जी का,
अगरासन ले जातीं।
दिन ऊगे से बड़े बरेदी,
कक्का घर आ जाते।

बकरी गैया बित्तो भैंसी, का नित दूध लगाते।
मक्खन दही मलाई मट्ठा,
लिया कभी ना मोल पिताजी।

सप्त ऋषि ध्रुवतारा दिखते,
उत्तर में बतलातीं।
मंगल लाल-लाल दिखता है,
शुक्र कहाँ समझातीं।

तीन तरैयों वाली डोली, को कहतीं हैं हिरणी।
यह भी उन्हें पता है नभ में,
कहाँ विचरता भरणी।

लगता जैसे सारी विद्या,
आती उन्हें खगोल पिताजी।