Last modified on 16 जुलाई 2012, at 22:20

दिन की मौत पर / ओम पुरोहित ‘कागद’

न जाने किस की याद में
गुज़र ही गया
एक अकेला दिन

इस रात की तन्हाई में
दिन की मौत पर
बाँच रहा है मर्सिया
एक अकेला चांद

मातमपुरसी को
आए हैं तारे अनेक

आसमान रोके बैठा है
आँखो में असीम आँसू
जो झर ही जाएँगे
कभी न कभी !