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दिन ढलने से पहले / अरुणाभ सौरभ
Kavita Kosh से
अंगड़ाई में कट गए फूलों से दिन
चिड़ियों की चहकन से शुरू हुआ दिन
आसमानी चादर ताने गुनगुने दिन
मखमली घास की सेज पर गीत गाते दिन
सूरज के जूते में फीता बान्धते दिन
या पीछे से हाथों से आँखेँ मून्दता दिन
भरी दुपहरी में सरसराता दिन
लोहित आकाश में कनात फैलाए दिन
सूरज को परदेस भेजकर सुबक रहा दिन
ढलने की पारी से लड़ रहा दिन
चान्द के चेहरे पर क्रीम लगाकर लौट आता दिन
चिड़ियों की चहक में फूलों की महक में
प्रभाती से आकाश से पाताल से
दसों दिशाओं से ऋतुओं से
नक्षत्रों से पक्षों से
मास-पहर और सातों घोड़ों से कह दो
कि सूरज के संग रोमांस करने का वक़्त हो गया है ...