भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन हफ्ते पखवाड़े बदले / विजय वाते

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन हफ्ते पखवाड़े बदले सन भी बदले हैं
लेकिन घर के सारे कोने पहले जैसे हैं

आज सुबह तेरी अलमारी मैंने खोली थी
और तभी से तेरी खुशबू मुझको घेरे है

मेरी सारी अच्छी शर्टें तू रख लेता था
देख आज तेरे ये कपडे मैंने पहने हैं

सब कहते हैं तू सपनों में आ कर मिलता है
अपनी किस्मत में सपने भी किस्मत जैसे हैं