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दिन होगा / हरे प्रकाश उपाध्याय
Kavita Kosh से
दिन होगा तो
औरतें चौखट लाँघ
चली जाएँगी नदी तक
और अँचरा में बाँध कर लाएँगी
पानी की धार
रात चाहे जितनी हो गहरी
औरतें बड़ी बेकली से कर रही हैं
दिन का इंतज़ार
दिन होगा
तो करेंगी वे दुनिया की
नये तरीक़े से झाड़-बुहार
रात की धूल और ओस
झटक आएँगी बस्ती के बाहर
औरतें ठीक-ठीक नहीं जानतीं
दिन कैसे होगा
कैसे बीतेगी यह रात
वे महज़ इतना जानती हैं
कि पूरब में जब खिलेगा लाल फूल
और सन्नाटा टूटेगा
मुर्गा बोलेगा तो बिहान होगा
कहते हैं वैज्ञानिक
जब यह धरती
घूम जाएगी थोड़ी-सी अक्ष पर
तो दिन होगा
कुछ होगा तो दिन होगा
रात से ऊबे हुए बच्चे
पाँव चला रहे हैं
और इसे लगकर धरती हिल रही है
लगता है
अब दिन होगा!