दिलनशीं ज़िन्दगी दिलरुबा ज़िन्दगी / रविकांत अनमोल
दिलनशीं<ref>सुन्दर ,दिल लुभाने वाली</ref> ज़िन्दगी दिलरुबा<ref>प्रिय</ref> ज़िन्दगी
बेमुरव्वत<ref>प्रेमविहीन</ref> बड़ी बेवफ़ा ज़िन्दगी
हर घड़ी इक नया मसअला<ref>समस्या</ref> ज़िन्दगी
हर घड़ी इक नई इब्तिदा<ref>आरम्भ</ref> ज़िन्दगी
मैंने सोचा बहुत फिर भी समझा नहीं
मौत से ये तिरा सिलसिला ज़िन्दगी
आज की रात तो जश्न की रात है
खिलखिला, मुस्कुरा, गुनगुना ज़िन्दगी
नफ़रतें, दुश्मनी, सरहदें, दूरियाँ
ऐसी बातों में रक्खा है क्या ज़िन्दगी
हाथ तेरा जो छूटा तो सब लुट गया
मुझसे छीनेगी अब और क्या ज़िन्दगी
ये कभी तो है ख़ुशियों की बरसात सी
है कभी दर्द की इंतिहा ज़िन्दगी
ग़म ही जिनका मुकद्दर है उनके लिए
मौत से है बड़ी बददुआ ज़िन्दगी
क्यूं अज़ल ता अबद<ref>आरम्भ से अन्त तक</ref> प्यास ही प्यास है
जब कि पानी का है बुलबुला ज़िन्दगी
जो बदलती नहीं ज़िन्दगी ही नहीं
हर घड़ी कुछ नया कुछ नया ज़िन्दगी
हो न हो ये कोई और ही चीज़ है
आग पानी न मिट्टी हवा ज़िन्दगी
पल में सारा जहां पल में बेआस्तां<ref>बेघर</ref>
एक चढ़ता उतरता नशा ज़िन्दगी
इक सफ़र सिर्फ़ 'पलने' से है क़ब्र तक
कोई कह दे तो है और क्या ज़िन्दगी