भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल के अरमान जब मचलते हैं / ईश्वरदत्त अंजुम
Kavita Kosh से
दिल के अरमान जब मचलते हैं
हसरतों के भी पल निकलते हैं
टूटे दिल भी कहीं बहलते हैं
वो तो बस आंसुओं में ढलते हैं
ठेस लगती है उस घड़ी दिल को
लोग जब रास्ते बदलते हैं
है वही कामयाब दुनिया में
वक़्त के साथ जो बदलते हैं
मौसमे-बरशगाल हो जैसे
अश्क़ आंखों से यूँ निकलते हैं
जब ज़मीं पर क़ियाम है सब का
लोग क्यों कितना फिर उछलते हैं
जब भी होता है सामना उनका
जिस्मो-जां एक साथ जलते हैं
अज़्म उकता अगर वो ऐ अंजुम
रास्ते खुद ब-खुद निकलते हैं।