दीप पर्व इस बार मनाएँ / सुनील त्रिपाठी
दीप पर्व इस बार मनाएँ, उन लोगों की खातिर।
एक दीप हम चलो जलाएँ, उन लोगों की खातिर।
बिगुल क्रान्तिका बजाजिन्होंने गोरों को ललकारा।
खून हमें दो, आजादी हम, देगें फूंका नारा।
इंकलाब का लगा घोष जो, फांसी पर थे झूले।
जन्मदिवस बलिदानदिवस हम जिनवीरों के भूले।
शीश झुका सम्मान जताएँ, उन लोगों की खातिर।
एक दीप हम चलो जलाएँ, उन लोगों की खातिर।
तापमान ऋण शून्य, डाल जो, शिविर पड़े रहते हैं।
जो सरहद पर बन अभेद्य, दीवार खड़े रहते हैं।
कारण जिनके आजादी के, जश्न देश में होते।
जिनके सतत् जागरण से हम, रात चैन से सोते।
गीत शौर्य के मिलकर गाएँ, उन लोगों की खातिर।
एक दीप हम चलो जलाएँ, उन लोगों की खातिर।
कश्मीरी पंडित घाटी से, जो थे गये भगाये।
जिनकेअच्छे दिन वापस फिर, नहींपलटकर आए.
जिनकी बहन बेटियों बहुओं, ने थी लाज लुटायी।
कोई भी सरकार अभी तक, जिन्हें बसा न पायी।
पुनर्वसन की मांग उठाएँ, उन लोगों की खातिर।
एक दीप हम चलो जलाएँ, उन लोगों की खातिर।