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दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ / मजरूह सुल्तानपुरी

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दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ \-२
खुद नाचती हैं सबको नचाती हैं रोटियाँ \-२
दीवाना आदमी को ...

बूढ़ा चलाए ठेले को फाकों से झूल के \-२
बच्चा उठाए बोझ खिलौनों को भूल के \-२
( देखा न जाए जो ) \-२ सो दिखाती हैं रोटियाँ \-२
दीवाना आदमी को ...

बैठी है जो चेहरे पे मल के जिगर का ख़ूँ
दुनिया बुरा कहे इन्हें पर मैं तो ये कहूँ \-२
कोठे पे बैठ ओ कोठे पे बैठ आँख लड़ाती हैं रोटियाँ \-२
दीवाना आदमी को ...

कहता था इक फ़क़ीर कि रखना ज़रा नज़र
रोटी को आदमी ही नहीं खाते बेख़बर \-२
( अक्सर तो आदमी को ) \-२ खाती हैं रोटियाँ \-२
दीवाना आदमी को ...

तुझको पते की बात बताऊँ मैं जान\-ए\-मन
क्यूँ चाँद पर पहुँचने की इन्सां को है लगन \-२
( इन्सां को चाँद में ) \-२ नज़र आती हैं रोटियाँ \-२
दीवाना आदमी को ...