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दीवालें / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
बिना कान दिए, बिना रियायत, बिना शरम
उन्होंने मेरे चारों ओर दीवालें चिन दी,मोटी और ऊँची ।
और अब मैं यहाँ बैठ महसूस करता हूँ नाउम्मीदी ।
मुझे कुछ और सूझता नहीं: मेरा यह भाग्य कुतरता है मन -
क्योंकि कितना कुछ था बाहर करने को मेरे पास ।
जब वे चिन रहे थे दीवालों को, ओह ! क्यों नहीं मैंने तवज़्जो दी
लेकिन मैंने कभी नहीं सुना राजगीरों को, एक हलचल तक नहीं ।
उन्होंने मुझे बाहरी दुनिया से अलग बन्द कर दिया अननभूत तरह से ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया