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दुःख इतना गहराया मन में(गीत) / राजकुमारी रश्मि

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दुःख इतना गहराया मन में
पलकों मेघ झरे.

          (१)
गगन भेदती हूक
पालथी मारे बैठ गयी
पीड़ा पथरा कर अंतर के
तल में पैंठ गयी
उडते हुए पखेरू के हैं,
दोनों पर कतरे.

          (२)
जाने कहाँ छिपी बैठी थी
कोई चिंगारी
अब तो इस की लपट हुई है
प्राणों पर भारी
फिर से होने लगे ह्रदय के
सूखे घाव हरे.

            (३)
मन के सात समंदर सूखे
दरक गयी धरती
लहराती नदियों ने छोड़ी
कोसों तक परती
मानसरोवर वाला अब यह
हँस कहाँ उतरे ?