मेरे दिल में एक जहाज़
डूब जाता है
समन्दर आगे बढ़ना छोड़ देता है
दर्द के कंकाल को
मिल जाती है देह
- इस दुनिया की तमाम छायाएँ
मेरे ज़ेहन पर गिर रही हैं -
मैं एक मानवीय तलछट हूँ
जो बढ़ा रही है रेत अपनी बाँहों पर
मेरी आत्मा के पास कोई दूसरा कोना नहीं
इस देह के बाहर रोने के लिए ।