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दुख / नोमान शौक़
Kavita Kosh से
दुख की अपनी भाषा होती है
सबसे अलग और सबसे जुदा
दुख
पागल लम्हों की पतझड़ आवाज़ें हैं
जिनकी क़ीमत का तख्मीना
उजले काग़ज़ पर
भद्दे काले शब्दों की
तेज़ी से चलती रेल के नीचे
सो जाता है
कविताओं और ग़ज़लों में
बेमानी हो जाता है !