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दूरियों के तट / कविता वाचक्नवी
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दूरियों के तट
आँसुओं को गीत में ढाला सदा
पीर को अविराम ही पाला सदा
प्रीत के सेतुक रचे
कुछ पास आने के लिए
दूरियों के तट बसे
मन को
निकट ढाला सदा।