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दूर दुर्ग के भीतर बसे नगर से / कात्यायनी
Kavita Kosh से
दूर दुर्ग के भीतर बसे नगर से
बरसों पहले निकल आई थी
वह स्त्री।
घूमती रहती थी गाँवों-क़स्बों में
हाटों-बाज़ारों में।
कलाइयों में अब भी लगी थीं
हथकड़ियाँ।
बहुतेरों ने प्रस्ताव रखा
तोड़ने का।
वह इनकार करती रही।
हथकड़ी तोड़ने वाले
हर हाथ की कलाई पर
वह ढूँढ़ती थी
हथकड़ियों के निशान।
रचनाकाल : अप्रैल, 1996