भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
दूर रक्खे ख़ुदा ज़लालत से
चाहे कम ही नवाजे़ दौलत से
छोड़िये वो भी कोई रौनक़ है
लोग देखें जिसे हिक़ारत से
और कुछ दीजिए भिखारी को
पेट भरता नहीं नसीहत से
ज़िंदगी लौटती नहीं जा के
इसको रक्खो बड़ी हिफ़ाज़त से
कुछ बड़े आदमी इसी से हैं
क्योंकि हैं दूर आदमीयत से
एक के बल पे सिर्फ़ चलता है
बढ़ता है घर सभी की मेहनत से
आदमी यूँ बड़ा नहीं होता
होता है ये बड़ों की सोहबत से