भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूहा / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नित कोनी जोबन रवै
आ जोण्योड़ी साच
पछतावैली तू पछै
मत देख्या कर काच !
मैं कर्त्ता ईं भरम स्यूं
बिनां छुड़ायां लार
तू किरिया है समझ लै
ओ गीता रो सार !
मिली मिनख री जूण तो
 मिनखाचारो राख
बीं हांडी रो मोल के
पोंदै हुवै सुराख ?
पर निन्दा ओलै करै
पण लेई आ जाण
चोड़ै हुसी बात बा
हुवै भींत रै कान !
चालै झूठ उंतावळी
हूवै न बीं रै आंख
साच चिड़कली खोलसी
सूरज उगियां पांख!
साठी बुध नाठी हुवै
कूडो है ओ बोल
अणभव रा हीरा हुवै
बां रै कनै अमोल !
झडया रूंख रा पानड़ा
बां नै नहीं विसाद
पोखण सारू मूळ नै
बै बण ज्यासी खाद !
बेझ बिना सूई नहीं
मूठ बिन्या तरवार,
डोरो खाली के करै
निरथक असि री धार!
गीत पंखेरू पांख स्यूं
उडै गगन री ओर
किनको कोनी उड सकै
हुवै नहीं जे डोर!
मथ्यो दही माखण बण्यो
तपा बणायो घीव,
करम हुयां खय छूटसी
जलम मरण स्यूं जीव !
अणहूणी हूणी हूवै
टळै न लाख उपाय,
ऊंट चढयोड़ै मिनख नै
गयो गंडकड़ो खाय !
 आप भलो तो जग भलो
निज रो आपो भूल
समझै भाई सूळ नै
ज्यूं गुलाब रो फूल !
डूंगर डीगा देखिया
देख्या समद अपार,
पण तिसणा रै सामनै
छोटो है गिगनार !
काकड़िया कंवळा हुता
जाता लूंकड़ खाय
खाटा है, कह चल धरया
कांई और उपाय !
 जलमै टाबर हांबतो
नहीं सुणी आ बात,
जलम ले’र रोवै पछै
मायस केरी जात !
रीस तनै आवै घणी
निज रै बटका बोड
ठा पड़यासी, रीस तूं
करणी देसी छोड़ !
नयो न कोई दिन हुवै
नई न कोई रात !
बाजै सियाणो मिनख पण
 आ भोळप री बात !
 कोनी हिव में च्यानणो
दिवलो करसी केह,
बीज्यो कोनी खेत नै
के करसी जद मेह !
बारै कोनी मांयनै
चालै जिण रै जुद्ध
का बणसी बै बावळा
का बण ज्यासी बुद्ध !
भेख संत रो पण बण्या
भगतां रा डाकोत,
घट बढ़ बता बाजार’ री
दैवै निज रा पोत !
फाटी जूत्यां गांठतो
सिरै भगत रैदास,
करघै साथ कबीर जुड़
अणभूत्यो परगास !
करसा लालच मत करी
मत बीजी सो खेत,
देई छोड़ अड़ाव तूं
हेम उगळसी रेत !
बादळ गाजै गगन में
सुण’र धडूकै ना’र,
आई आ किणरी कजा
कुण दीनी ललकार !
इण सिसटी रै मूळ रो
पंचभूत आधार,
खूट ज्यावै जे एक तत
लोप हुवै संसार !
दिन ऊंधा दिन पाधरा
हुवै हूण रै लार,
राखिजै समभाव तू
आतम धरम विचार !
बड़यो खेत में चोरड़ो
ळीन्हीं फलियां चूंट
भाज्यो पण अणडयो बिंनै
धाती पकड़ भरूंट
केठा कीं खिण आ पड़ै
अणचींत्यो बजराक
नाड़ करी नीची मती
ऊंचो राखी नाक !
फळ धरती री कूख में
ऊपर आया पान
माळण दाई काढ़ियो
पाक्यो गरभ पिछाण !
नहीं दीप, बाती बळै
आ दीखै साख्यात
आंख नहीं रोवै हियो
कुणं समझै आ बात ?
कांई ल्यायो आवतो !
जातो लेग्यो साथ ?
मुट्टी भींच्यां जलमियो
 गयो पसारयां हाथ !

पैली दाणा नाखिया
फेर बिछायो जाळ,
भूखा पंछी आ फंस्या
दिख्यो न परतख काळ!
तू थारो बैरी भैळै
तू ही थारो मीत,
करम लिख्योड़ी ना टळै
 तू मत खोटी चींत !
ईंडो पाक्यां चिड़कली
मौ बीं रै टांच,
चुग्गो देवै अब चिड़ी
मिला चांच स्यूं चांच !
इचरज क्यांरो कर सकै
झूठो तिल रो ताड़
कैबत कूड़ी, खेत नै
कदै न खावै बाड़ !
दिवलै री लो हेम सी
बिसकन्या साख्यात
मरै पतिंगा चूम कर
बै के जाणै घात ?
खावै तूंबा, आकड़ा
नीम चबावै टाट,
पण पी इण रै दूध नै
मांदा छोड़ै खाट !
पारै ज्यूं चंचळ हूवै
टिक न मन खिण एक,
इण रै लारै चालसी
जिण रै नहीं विवेक !
सबदां लारै क्यूं फिरूं
मनै पड़ी के पीक,
आवो मत आवो नहीं
कोनी मनै अड़ीक!
जको जाण ळै साच नै
कोनी बदळै भेख
करसी स्यााणा संत री
परख आचरण देख!
दरसण सेवा थे करया
कवै न साचा साध,
अहम मुगत बारै रवै
आठों पौर समाध !
चिणो एकलो बापड़ो
फोड़ सकै कद भाड़ !
पण काचर रो बीज, मण
पय नै देवै फाड़ !
भलै मिनख रो माजनो
अळयो मिनख दै पाड़
देई थारो पोत मत
भींच्यां राखी जाड़ !
 मूळ दे दियो, ब्याज री
कोनी हुई जुगाड़,
लगा ब्याज रो ब्याज तू
तिल रौ करी न ताड़ !
चावै निज री खैर तू
मत पाळीजै बैर
पाळणियै नै ओ डसै
रळै रगत में जै’र !
मत जाणी कुण जाणसी
ओळै करियो पाप
बैठो थारै में जको
बो देखै चुपचाप !
रैवण सारू ऊंदरा
खोदै बिल नै आप
कुण निबळा नै रैण दे
बडज्या बीं में स्याप !
एरण नै बैरण समझ
करै हथोड़ा मार,
दोन्यां रो कुळ एक पण
मतलब रो संसार !
अळप सबद मोटो अरथ
वामन मांय विराट,
घणा सबद निरथख हुवै
बंजर जिंयां सपाट !
संजम राखी जीभ रो
कटु मधु नै समतोल,
जीणै खातर जीमजै
बोली गतता बोल !
जलै न पाणी अगन स्यूं
नह झुळसै गिगनार
बळै न धरती अगन स्यूं
दाझै नहीं बयार !
फळ रै सागै कद सड़ै
बीज रूंख रो मूळ
जै सड़ ज्यावै बीज तो
विणसै जीव समूळ !
पसु पंछी अलघो हुवै
नर मादा रो रूप
घणो फूठरो नर हुवै
मादा हुवै कुरूप !
उळझत सळझत है सदा
धजा पवन रै जोर
बरसै, बिन बरस्यां बगै
बादळिया रा लोर !
बैर न निवड़ै बैर स्यूं
खमा अमी री धार
राखी संजम जीभ रो
बोली वचन विचार !