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दृढ़ / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल

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वे तो हमें वहाँ फेंकते हैं
जहाँ शहीद गिरा करते हैं
औ, गिरते आये हैं
नहरों दरियाओं में जो, वही हमारे हैं
औ, कानून की चिताओं में
जो वही, अंग्रेंज वाले हैं
वहाँ लाखों करोड़ों देशभक्तों की राख है
उन्होंने सरमायेदार तो
एक भी नहीं जलाया
उन्होंने तो जट्टों सैणियों के लड़के
औ, झीवर पानी ढोते ही जलाये हैं
औ, भट्टों में कोयला झोंकने वाले लोग
काले काले प्यारे नैन-नक्श वाले पुरबीए।

वे तो हमें फेंकते हैं
हरी लचकीली काही* में
या पहाड़ी कीकरों की महक में, हम उनको
नालियों में
गोबरों में
कुत्तों के बीच से
लोगों की जूतियों के नीचे से घसीटेंगे

* काही- नदियों, नहरों के किनारे उगने वाले सरकंडे