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देखता क्रिकेट एक आदमी / अनिरुद्ध नीरव
Kavita Kosh से
देखता क्रिकेट
एक आदमी
सूखी-सी डाल पर
तालियाँ बजाता है
एक-एक बॉल पर
मन में
स्टेडियम प्रवेश की
चाहत तो है
लेकिन हैसियत नहीं
इतनी ऊँचाई पर
भीड़-भाड़ गर्मी से
राहत तो है
लेकिन कैफ़ियत नहीं
भागा है काम से
नहीं गया
आज वह खटाल पर
दिखता है
ख़ास कुछ नहीं लेकिन
भीतर है
नन्हा-सा आसरा
इधर उठेगा
कोई छक्का तो
घूमेगा स्वतः कैमरा
पर्दे पर आने की
यह ख़्वाहिश
कितनी भारी आटे-दाल पर ।