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देखना / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
दुनिया को
दुनिया के लोगों को
उनके चश्मों से नहीं
अपनी नंगी आँखों से देखो
निगाहें डालकर
उनके भीतर
दिखेगा तल में कचरा कहीं ज़रूर
जिसमें
गुलाब भी खिलते हैं