भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर
Kavita Kosh से
देखि-देखि जिय अचरज होई यह पद बूझें बिरला कोई॥
धरती उलटि अकासै जाय, चिउंटी के मुख हस्ति समाय।
बिना पवन सो पर्वत उड़े, जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े।
सूखे सरवर उठे हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा।
बैठा पण्डित पढ़े कुरान, बिन देखे का करत बखान।
कहहि कबीर यह पद को जान, सोई सन्त सदा परबान॥