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देखो माई इत घन उत नँद लाल / गोविन्द
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देखो माई इत घन उत नँद लाल।
इत बादर गरजत चहुँ दिसि, उत मुरली शब्द रसाल॥
इत तौ राजत धनुष इंद्र कौ, उत राजत वनमाल।
इत दामिनि दमकत चहुँ दिसि, उत पीत वसन गोपाल ॥
इत धुरवा उत चित्रित हैं हरि, बरखत अमृत धार।
इत बक पाँत उडत बादर में, उत मुक्ताफल हार॥
इत कोकिला कोलाहल कूजत, बजत किंकिणी जाल।
'गोविंद प्रभु की बानिक निरखत, मोहि रहीं ब्रजबाल॥