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देख कर तुझको दफअतन निकली / सिया सचदेव
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देख कर तुझको दफअतन निकली
ज़िन्दगी भर की अब थकन निकली
चांदनी रक़स पर थी अमादा
रात आंगन में जब दुलहन निकली
मैंने जब भी बुरश उठाया तो
तेरी तस्वीर मुझसे बन निकली
देख के उसको आंख भर आई
इक सहेली जो हमवतन निकली
तेरे सीने से लग के क्या रोई
मुद्दतों बाद इक घुटन निकली
उससे बिछड़ी तो ज़िन्दगी मेरी
उसकी परछाईयों का बन निकली
ये अमीरों के पास रहती हैं
हाय दौलत भी बदचलन निकली
काफिला ख्वाहिशों का थमते ही,
दिल से मेरे हर इक चुभन निकली
रात भर रो लिया जो जी भर के
तब सिया जा के ये जलन निकली