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देख लो भले / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
तुम्हारे पास अथाह भूमि थी
अमूल्य और उपजाऊ
बादल तुम्हारे हाथ बंधे गुलाम
पवन तुम्हारी आरक्षित
सूरज तुम्हें पूछ कर
उदय और अस्त होता था
तुमने उस पृथ्वी में
बीज बोए
फूल खिलाए....
हमारे पास मुट्ठी-भर पृथ्वी थी
जिस की मिट्टी-काली
हमारे पास आँसुओं का पानी था
दुखों की तल्ख़ धूप थी
होठों पर सदियों की ख़ामोशी थी
लेकिन हमारी आँखों में कुछ सपने थे
हमने भी उस मिट्टी में
सपने बोए
जो फूल बन कर खिले
लेकिन फिर भी देख लो
हमारे फूलों का रंग
तुम्हारे फूलों से अधिक
गाढ़ा और शोख है
देख लो भले ही ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा